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भटकती आत्मा भाग - 35




भटकती आत्मा भाग –34

मनकू माँझी मैगनोलिया का भविष्य सुन चुका था l चार दिन बाद उसकी शादी हो जाने वाली थी l शायद वह भी अब तैयार ही है l उसका प्यार खोखला निकला,परन्तु मनकू तो सच्चा प्रेम करता था,फिर अपनी आंखों से अपने प्यार की दुनिया लुटते हुए कैसे देख सकता था ! नहीं जीवित नहीं रहेगा वह ! एक उद्देश्य था,उसके जीवन का - जानकी की शादी ! वह तो पूरा हो गया,अब क्या बचा है ! जिसके लिए जीवित रहे ! उसकी आशा का केंद्र बिंदु मात्र मैगनोलिया थी,परन्तु वह भी अब पराई हो जाएगी ! जीवन तो नीरस हो चुका था,वह अब मात्र जीवित लाश था ! कब तक वह घसीटता रहेगा इस लाश को ! नहीं, व्यर्थ है अब जीना ! चार दिनों के बाद जैसे ही मैगनोलिया पराई होगी,वह अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेगा ! दृढ़ निश्चय करता मनकू माँझी चार दिन बीतने का - मैगनोलिया के विवाह का ! इंतजार करने लगा | वह जब नेतरहाट पहुंचा था,तब कितना खुश था | परंतु कलेक्टर साहब की बातों ने उसके जीवन बगिया में आग लगा दी थी। वह अपने गांव पहुंचा था। पहले तो वह सोच रहा था कि गांव में साधु बनकर लोगो को खूब छकाएगा, फिर प्रकट हो जाएगा | कितने खुश होंगे गांव के लोग,उसके अपने घर वाले l परंतु फिर उसने सोचा था चार दिनों के बाद तो मरना ही है,इसलिए अब प्रकट होने से क्या लाभ ! उनकी सोई हुई व्यथा को पुनः क्यों जागृत करे,और वह मन मसोसकर रह गया था। लेकिन एक बात जो उसकी जीभ से फिसल गई थी,उसके लिए फिर चिंतित हो उठा था। उसने क्यों कह दिया था,चार दिनों के बाद मनकू माँझी तुम लोगों को अमुक स्थान पर मिलेगा। खैर जो निकल गया था,उसको अब लौटाया तो नहीं जा सकता था। यही सब सोचता हुआ मनकू माँझी पर्वत की एक कंदरा में छिपा बैठा था। हठात उसको याद आया - मैगनोलिया का आज जन्मदिन है,उसको कुछ उपहार देना चाहिए। परंतु देगा क्या ! फिर कैसे पहुंचाएगा वह ! यही सब सोचता हुआ वह पुष्प संचय करने लगा।


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कलेक्टर साहब का बंगला आज दुल्हन के समान सजा हुआ था। रंग-बिरंगे छोटे-छोटे विद्युत बल्ब लाल पीले हरे गुलाबी प्रकाश बिखेर रहे थे। बंगला का गेट रंग-बिरंगे कागज के पुष्पों से सजाया गया था। मेहराब को विशेष आकर्षक ढंग से सजाया गया था। उसमें लगे तेज रौशनी वाले बल्ब दूर तक प्रकाश बिखेर रहे थे। रात में भी दिन का भ्रम हो रहा था। बंगला की दीवार का लाल रंग प्रकाश में रक्त में डूबा हुआ प्रतीत हो रहा था। कमरों में वैभव के सर्व साधन उपलब्ध थे। हॉलनुमा कमरे के मध्य सजे हुए विशाल टेबल पर रेशमी चादर बिछा हुआ था। उस पर बड़ा सा केक रखा था, जिसके चारों और चौबीस मोमबत्तियां जल रही थीं। एक-एक कर लोग आते जा रहे थे। सब की गाड़ियां सड़क पर लंबी कतार में खड़ी थीं। उस कतार की लंबाई धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही थी। अंग्रेज युवक-युवतियों के जोड़े कार से उतरते और बंगला में प्रवेश कर जाते थे। अधिकतर अंग्रेज लोग ही थे। कभी-कभी एक दो भारतीय भी पाश्चात्य रंग में सराबोर दिख जाते थे। उन लोगों की घुली मिली हंसी की आवाज कभी-कभी कानों में पड़ जाती थी। मिस्टर जॉनसन नए सूट में सजा-सँवरा लोगों के स्वागत के लिए गेट पर खड़ा था। मैगनोलिया कहीं नहीं दिखती थी। शायद अपने कमरे में अंग्रेज युवतियों के बीच घिरी थी।
   मनकू माँझी अंधकार में एक ऐसे स्थान पर खड़ा था, जहां से सब कुछ दिख रहा था। वह स्थान ऊंचा भी था। वह किसी नौकर की प्रतीक्षा में था,परन्तु उस अवसर पर भला कोई नौकर इधर क्यों कर आता ?
  कुछ देर के बाद "हैप्पी बर्थडे टू यू" की आवाज गूंजने लगी। कुछ और प्रतीक्षा के बाद मनकू माँझी दु:खी हो उठा। उसकी प्रेमिका का जन्मोत्सव था,और वह अभागा खुले दिल से उसको शुभकामना भी अपनी ओर से नहीं पहुंचा सकता था। सहसा "कलुआ" दिख गया,वह किसी कार्य वश सड़क पर आया था। मनकू माँझी उसके निकट पहुंचा।
  "अरे कौन हो भाई, क्या बात है" - अचकचा कर कलुआ ने पूछा,फिर अंधेरे में भी मनकू को पहचान कर चिल्लाने के लिए मुंह खोला,परन्तु मनकू माँझी ने अपने हाथ की तलहथी उसके मुख पर रख दिया,फिर फुसफुसाकर कहा - 
   "घबड़ाओ नहीं कलुआ,यह मनकू माँझी का भूत नहीं है,मैं स्वयं जीता जागता खड़ा हूं। तुम्हारे साहब ने तो मार ही दिया था,परन्तु तुम तो जानते ही हो कि मारने वाले से बचाने वाले का हाथ लंबा होता है। मैं किसी तरह बच गया। अभी मेरी प्रेमिका का जन्मोत्सव हो रहा है,परन्तु मैं वहां जा भी नहीं सकता। तुम मेरा एक काम कर दो भाई,किसी तरह यह फूलों का गुलदस्ता मैगनोलिया तक पहुंचा दो,और यह चिट उसके हाथ में ही देना। यह बात नहीं खुले कि मनकू माँझी अभी जीवित है। तुमको मुझसे जरा भी सौहार्दपूर्ण स्नेह हो तो यह बात अपने दिल में ही दफना देना भाई। कलुआ भौंचक्का सा मनकू माँझी को देखता रहा, फिर खुशी से उसके गले लग गया।
कलुआ ने चुपचाप उसके हाथों से गुलदस्ता लिया तथा चिट पॉकेट में डाल लिया। मनकू माँझी उसको बंगला की तरफ जाते हुए देखता रह गया।



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बंगला के एक कक्ष में चुपचाप बैठी हुई थी मैगनोलिया l कई सहेलियों ने उसको छेड़ा भी था । कई तरह के परिहास किए, लेकिन उदास मैगनोलिया स्थिर चित्र-लिखित सी बनी रही। कोई भी उसकी रहस्यमय चुप्पी को नहीं समझ पा रही थी। केवल हां-हूँ में जवाब दे देती वह। कभी-कभी तो जीभ को यह कष्ट भी नहीं उठाना पड़ता,केवल सिर हिलाने से ही काम चल जाता। उसके अजीब व्यवहार से सब चकित थे। कितनों ने कलेक्टर साहब से इस संदर्भ में पूछा भी,परन्तु वह भला मैगनोलिया के प्रेम को उजागर करके अपनी बदनामी क्यों लेते ? उन्होंने कारण यही बताया -    "दुर्घटना से मैगनोलिया का मस्तिष्क दुष्प्रभावित हुआ है,डॉक्टरों का कहना है कि धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगी"। 
यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही थी, कुछ कानाफूसी भी चल ही रहा था,परन्तु कलेक्टर साहब जानबूझकर अंजान बने थे। सभी मेहमानों के आगमन के बाद कलेक्टर साहब ने मैगनोलिया से कहा -  
    "आओ बेटी,बर्थडे केक काटो"
  मैगनोलिया अपनी जीती जागती लाश को घसीटती हुई हॉलनुमा कमरे में पहुंची। उसके मुख पर हंसी कौन कहे, मुस्कुराहट भी नहीं थी। सिखाए हुए छोटे बालक के समान उसने इशारे पर केक काट डाला और मोमबत्तियां बुझा दी। फिर वह पागल के समान खाली आंखों से इधर-उधर देखती रह गई।
   "हैप्पी बर्थडे टू यू" का मधुर स्वर कानों में व्यर्थ सा प्रतीत होता था उसको। लगता था,वह सुन भी नहीं रही है। सारी रस्म पूरी कर वह अपने कमरे में चली गई | उसने अपने कमरे से ही सुना  -    " मिस्टर विलियम रदरफोर्ड, मेरे अनन्य दोस्त हैं l इन्हीं के पुत्र विलियम जॉनसन ने कुछ दिन पूर्व पीसीएस में सफलता पाई है l मैं अपनी पुत्री को उसी के साथ एंगेज कर रहा हूं यह मैरिज दो दिन बाद संडे को होगा। यह विचार विलियम रदरफोर्ड के हैं"।
तालियों की गड़गड़ाहट हॉल में गूंजने लगी । कई युवक और युवतियां शुभकामना व्यक्त करने मैगनोलिया के कमरे तक आए,परन्तु मैगनोलिया के भावनाहीन मुखकमल को देखकर लोगों की हिम्मत जवाब दे गई,और वे लौट गए। और फिर मैगनोलिया ने अंदर से किवाड़ बंद कर लिया था। 
  वह पलंग पर पड़ी हुई छत को निहार रही थी। न तो किसी तरह की चिंता थी,न दु:ख और न ही प्रसन्नता | पागल जैसी खाली-खाली आंखें न जाने छत में क्या देख रही थीं। फिर उठ कर बैठ गई। उसकी दृष्टि कमरे में पड़ी एक टेबल पर चली गई,ताजे फूलों का एक गुलदस्ता मुस्कुरा रहा था। कदम उसके उठ गये,उसी ओर जाने को। कई महीनों बाद पहली बार उसके मुख पर आश्चर्य मिश्रित भाव उभरे। उसने गुलदस्ते को उठा लिया,यह वही फूल थे जिसको पहली बार देखकर उसने घाटी में उतरकर तोड़ना शुरू किया था,और मनकू दुर्घटना का शिकार हो गया था। उसकी भावना को मनकू को छोड़कर और कौन जान सकता है ? इन मेहमानों के लिए ऐसा अनोखा उपहार देना संभव नहीं है। एक कागज का चिट उसमें छिपाकर रखा गया था। उसने चिट उठा लिया, पढ़ा -  
  "डियर मैगनोलिया तुम्हारा जन्मदिन मुबारक हो,हजारों वर्ष तक जीवित रहो। यह तुच्छ भेंट मनकू भेज रहा है,अगर मिलने की इच्छा हो तो उसी प्रेम स्थली पर कल मिल लेना। 
  तुम्हारा अदना सा सेवक 
         मनकू माँझी" 
"ओह,माइकल तुम ! पत्र में कैसा परायापन सा झलकता है ! तुमको गलतफहमी हो गया है, डियर"।
  दिल में एक टीस उठा। सारी घटना उसके मानस पटल पर चलचित्र की भांति अंकित होती चली गई। दिल को मुट्ठी में थामे औंधे मुंह बिस्तर पर जा गिरी। जीने की इच्छा अब उसके मन में अंकुरित हो रही थी। अब वह किसी तरह मिस्टर जॉनसन से शादी नहीं करेगी। उसका प्यार लौट आया था। पता नहीं कितना मुसीबत झेलना पड़ा होगा माइकल को। नहीं -माइकल - नहीं, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती। तुमको छोड़कर किसी अन्य के बारे में मैं सोच नहीं सकती। फिर अपने व्यवहार पर उसको झल्लाहट हो आई। क्यों उसने जॉनसन से शादी करने की प्रस्तावना स्वीकार कर ली ! खैर ! अब यह नहीं होगा ! नहीं- कभी नहीं ! रात भर मैगनोलिया मनकू माँझी की याद में तड़पती रही। कभी विरह वेदना से मन व्यथित हो उठता। कभी बीते क्षणों को याद कर मुस्कुराने लगती। यह कम खुशी की बात थी कि उसका माइकल मौत के मुंह से मुस्कुराता हुआ लौट आया था।

                                   क्रमशः
       
               



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